Difference between revisions of "वाटर पोर्टल / वर्षाजल संचयन / सतही जल / लघु पनबिजली"

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एक अहम पर्यवेक्षण यह भी है कि प्रति स्थापित किलोवॉट लागत अक्सर उल्लिखित राशि की तुलना में ज्यादा है. ऐसा आंशिक तौर पर लागत के विश्लेषण में आने वाली कठिनाई की वजह से है. लघु पनबिजली की लागत का एक अहम हिस्सा स्थानीय समुदायों के लोगों से श्रम के रूप में मदद लेकर कम किया जा सकता है. स्थानीय मुद्राओं के तेज अवमूल्यन और मुद्रास्फीति को देखते हुए मौद्रिक संदर्भों में लागत कम करना खासा कठिन है. इसके अलावा लागत के आकलन को लेकर कोई निरंतरता नहीं है. मिसाल के तौर पर वितरण की लागत कितनी होगी और घर मेंं होने वाली वायरिंग, जल प्रबंधन सिंचाई आदि की लागत सब अस्पष्ट हैं.
 
एक अहम पर्यवेक्षण यह भी है कि प्रति स्थापित किलोवॉट लागत अक्सर उल्लिखित राशि की तुलना में ज्यादा है. ऐसा आंशिक तौर पर लागत के विश्लेषण में आने वाली कठिनाई की वजह से है. लघु पनबिजली की लागत का एक अहम हिस्सा स्थानीय समुदायों के लोगों से श्रम के रूप में मदद लेकर कम किया जा सकता है. स्थानीय मुद्राओं के तेज अवमूल्यन और मुद्रास्फीति को देखते हुए मौद्रिक संदर्भों में लागत कम करना खासा कठिन है. इसके अलावा लागत के आकलन को लेकर कोई निरंतरता नहीं है. मिसाल के तौर पर वितरण की लागत कितनी होगी और घर मेंं होने वाली वायरिंग, जल प्रबंधन सिंचाई आदि की लागत सब अस्पष्ट हैं.
  
===Field experiences===
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===जमीनी अनुभव===
* There are approximately 130 MHP plants66 currently in operation in Sri Lanka. Most are less than 100 kW in capacity.
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* श्रीलंका में करीब 130 एमएचपी के 66 संयंत्र  इस समय चल रहे हैं. उनमें से अधिकांश 100 किलोवॉट से कम क्षमता वाले हैं.
* [http://microhydropower.net/ke/Tungu-Kabiri/ The Tungu-Kabiri community hydro project.]
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* [http://microhydropower.net/ke/Tungu-Kabiri/ तुंगु कबीरी सामुदायिक जल विद्युत परियोजना.]
  
'''In Tanzania'''<br>
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'''तंजानिया में'''<br>
Church missions have been at the forefront with regard to installing microhydro systems. An example is the Matembwe village hydro scheme, which powers a vocational center run by a mission. The system has an installed capacity of 150 kW and supplies electricity for commercial uses and individual households in two villages located 5 km apart, with the bulk of the electricity being used at the vocational center. For the first few years, two village committees were responsible for managing the project. As the capacity of these committees was found to be insufficient, management was handed over to the Matembwe Village Co. Ltd., who manages the vocational training centre. The ownership of the scheme is shared by the Diocese, an NGO, the village authority and the District Authority. Since the inception of the hydro project, the national grid has reached the villages concerned and the villagers now have the choice between electricity from hydropower or from the grid, with most of them staying with the cheaper local hydropower option.
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यहां लघु विद्युत संयंत्र स्थापित करने के मामले में चर्च मिशन बहुत आगे रहे हैं. माटेंब्वे गांव की पनबिजली योजना इसका उदाहरण है. यहां मिशन के जरिये एक व्यावसायिक केंद्र चलाया जाता है. इस सिस्टम ने 150 किलोवॉट क्षमता का संयंत्र स्थापित किया है और वह 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित दो गांवों को वाणिज्यिक और निजी इस्तेमाल के लिए बिजली उपलब्ध कराती है. इसमें से अधिकांश बिजली का इस्तेमाल व्यावसायिक केंद्र में होता है. पहले कुछ सालों तक दोनोंं गांवों की समितियां इस परियोजना के प्रबंधन के लिए उत्तरदायी थीं. जब इन समितियोंं की क्षमता अपर्याप्त लगने  लगी तब प्रबंधन का काम मातेंब्वे ग्राम कंपनी लिमिटेड को सौंप दिया गया. यह कंपनी व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र का भी संचालन करती है. योजना का स्वामित्व एक स्वयंसेवी संगठन डायोसेस, ग्राम प्राधिकार और जिला शासन के पास है. पनबिजली परियेाजना की शुरुआत के बाद से ही राष्ट्रीय ग्रिड ने संबंधत गांवों से संपर्क किया और अब गांव वालों के पास चयन की सुविधा है कि वे ग्रिड की बिजली लेते हैं या पनबिजली. अधिकांश गांववासी सस्ती पनबिजली ही ले रहे हैं.
  
'''In India'''<br>
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'''भारत में'''<br>
India has an estimated SHP potential of about 15 000 MW. So far, from 495 SHP projects, an aggregate installed capacity of 1693 MW has been installed. Besides these, 170 SHP projects with an installed capacity of 479 MW are under implementation. The database for SHP projects created by the Ministry of Non-Conventional Energy Sources (MNES) now includes 4233 potential sites, with a total capacity of 10 324 MW.
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भारत में लघु पनबिजली की अनुमानित संभावना 15,000 मेगावॉट तक की है. अब तक 495 ऐसी परियोजनाएं शुरू की गई हैं जिनकी स्थापित क्षमता करीब 1693 मेगावॉट है. इसके अलावा 170 ऐसी परियोजनाएं क्रियान्वयन के अधीन हैं जिनकी स्थापित क्षमता 479 मेगावॉट है. इन परियोजनाओं के आंकड़े अपारांपरिक ऊर्जा मंत्रालय के पास हैं. उसने अब तक 4233 संभावित स्थानों का चयन किया है जिनकी कुल क्षमता 10,324 मेगावॉट है.
  
 
===Manuals, videos, and links===
 
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Revision as of 18:37, 4 December 2015

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Micro hydro icon.png
तुंगु-कबीरी सामुदायिक पनबिजली परियोजना. तुंगु कबीरी लघु पनबिजली परियोजना केन्य की एक सस्ती, स्थायी और छोटे पैमानेे वाली तकनीक पर आधारित है जो गिरते पानी से बिजली बनाती है. फोटो: माइक्रोहाइड्रोपॉवर.नेट
कॅमरून में एक सामुदायिक लघु पनबिजली परियोजना. फोटो: टेरी हाथवे.
अफ्रीका के दक्षिणी हिस्से में लघु पनबिजली. एक महिला और एक बच्चा एक विनिर्मित नहर के करीब. नहर का निर्माण लघु पनबिजली के लिए किया जाता है. पानी का इस्तेमाल स्थानीय किसान प्लास्टिक के पाइप के जरिए सिंचाई के लिए भी करते हैं. फोटो: प्रैक्टिकल एक्शन.

लघु पनबिजली सामान्य पनबिजली से अलग होती है क्योंकि यह नदी के बहाव के साथ छेड़छाड़ नहीं करती है. आमतौर पर इसका आकलन 300 किलोवॉट प्रति घंटा तक की क्षमता के आधार पर किया जाता है. लघु विद्युत व्यवस्था में नदियों पर बांध नहीं बनाए जाते लेकिन इसके बजाय नीचे की ओर आ रही नदी की धारा को एक पाइप की मदद से टर्बाइन में गिराया जाता है. इस टर्बाइन से बिजली बनती है जिसे बैटरियों में संरक्षित किया जा सकता है और जरूरतमंद गांवों में ले जाया जाता है.

समुदाय और पनबिजली
300 किलोवॉट तक की क्षमता के पनबिजली संयंत्र अफ्रीका के कई दूरदराज गांवों को जरूरी बिजली उपलब्ध कराने में सक्षम हैं. इनकी मदद से मक्के की दराई, छोटे कारोबारों और घरों को बिजली देने जैसे काम होते हैं. अफ्रीका के अधिकांश ग्रामीण समुदायों के गांवों में ग्रिड आधारित बिजली आने में कई साल का समय लग सकता है. लेकिन इनमें से अधिकांश गांव नदियों के किनारे रहते हैं. ऐसे में उन गांवों की अपनी खुद की बिजली बनाने में मदद की जा सकती है. इसके लिए खासतौर पर तकनीकी और वित्तीय समर्थन की आवश्यकता होती है. तथा उनको यह निर्देशन देना होता है कि इस संयंत्र की देखरेख कैसे की जाए. एक लघु पनबिजली संयंत्र अपेक्षाकृत कम लागत और कम तकनीक वाला होता है फिर भी यह स्थानीय संसाधनों पर दबाव डाल सकता है. इसकी लागत जगह-जगह पर निर्भर करती है. लेकिन नहर, इनटेक आदि के निर्माण में भौतिक सहयोग से समुदाय इसकी लागत कम कर सकते है.

किन तरह की परिस्थतियों में यह तकनीक काम में आती है

पारंपरिक बिजली घरों में जहां जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल होता है वहीं लघु पनबिजली परियोजनाओं का वातावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। चूंकि ये बांध या जमा पानी के बजाय बहते पानी पर आधारित होते हैं इसलिए बड़े पैमाने पर चलने वाली पनबिजली परियोजनाओं की तुलना में भी खासे बेहतर होते हैं.

वास्तव में वृक्षों को काटने की जरूरत कम करके तथा खेती को किफायती बनाकर लघु पनबिजली परियोजना स्थानीय वातावरण पर सकारात्मक असर डालती है.

छोटे स्तर पर देखा जाए तो इनके सामने निम्नलिखित गतिरोध आते हैं:

  • नीतिगत एवं नियामकीय ढांचा: ऐसी परियोजनाओं के लिए नीति और नियम या तो हैं ही नहीं या फिर एकदम अस्पष्ट हैं. कुछ देशों में पनबिजली का विकास तो हुआ है लेकिन उनका नियमन नहीं है जबकि अन्य देशों में ये ग्रामीण विद्युतीकरण की प्रक्रिया के आम नियामकीय ढांचे का हिस्सा हैं. आम ढांचों में अक्सर पनबिजली आधारित मुद्दों को लेकर समझ का अभाव होता है. इन मुद्दों में पानी, बुनियादी ढांचे की समझ और भुगतान से संबंधित मुद्दे होते हैं.
  • वित्तीय मदद: नवीकरणीय ऊर्जा के अन्य स्रोतों से इतर पनबिजली की छोटी परियोजनाओं की शुरुआती लागत अधिक आती है जबकि उसकी परिचालन और रखरखाव लागत कम है. आमतौर पर उपलब्ध वित्त पोषण के मॉडल इसकी मदद नहीं करते. अफ्रीका में ऐसे तमाम मॉडल किसी न किसी तरह दानदाताओं की मदद पर आधारित हैं. वैकल्पिक वित्तपोषण मॉडल के उपाय विकसित करने की आवश्यकता है ताकि इन परियोजनाओं की मदद की जा सके.
  • पनबिजली परियोजना की योजना, निर्माण और परिचालन क्षमता: ग्रामीण विद्युतीकरण की दिशा में इन छोटी परियोजनाओ की उपयोगिता को लेकर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय ज्ञान और जागरूकता लगभग नदारद है.इसमें राजनीतिक, सरकारी और नियामकीय संस्थाओं का ज्ञान भी शामिल है. इसके अलावा स्थानीय उत्पादन और घटकों को लेकर जानकारी का अभाव तो है ही.
  • जल संसाधनों पर आंकड़े: तकनीक को लेकर सीमित ज्ञान, पानी की उपलब्धता को लेकर पर्याप्त आंकड़ों की कमी के बीच उसके बहाव की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए ताकि परियोजना विकसित की जा सके.

विनिर्माण, परिचालन और रखरखाव

A micro-hydro power set up. Click image to zoom in. Drawing: Practical Action.

लागत

इन परियोजनाओं की लागत प्रति किलोवॉट क्षमता 1,200 पाऊंड से 4,000 पाऊंड के बीच होती है. ऐसा उपयुक्त तकनीक के प्रयोग के साथ होता है जो कि पारंपरिक तकनीकों की तुलना में खासी सस्ती होती है.

पांच देशों में किए गए परीक्षणों लघु पनबिजली संयंत्रों की पूंजीगत लागत शाफ्ट के हिसाब से नेपाल और जिंबाब्वे में 714 डॉलर और मोजांबिक में 1,233 डॉलर के दरमियान रही. औसत लागत की बात की जाए तो वह प्रति किलोवॉट स्थापित क्षमता के मुताबिक 965 डॉलर रही. यह राशि कुछ अध्ययनों में उल्लिखित राशि के अनुरूप ही है. बिजली उत्पादन योजना की स्थापित क्षमता की लागत बहुत ज्यादा है. प्रति किलोवॉट यह लागत पेरू के पुकारा में 1136 डॉलर, पेरू के ही पेड्रो शहर में 5630 डॉलर है. इसकी औसत स्थापित क्षमता 3,085 डॉलर है.

एक अहम पर्यवेक्षण यह भी है कि प्रति स्थापित किलोवॉट लागत अक्सर उल्लिखित राशि की तुलना में ज्यादा है. ऐसा आंशिक तौर पर लागत के विश्लेषण में आने वाली कठिनाई की वजह से है. लघु पनबिजली की लागत का एक अहम हिस्सा स्थानीय समुदायों के लोगों से श्रम के रूप में मदद लेकर कम किया जा सकता है. स्थानीय मुद्राओं के तेज अवमूल्यन और मुद्रास्फीति को देखते हुए मौद्रिक संदर्भों में लागत कम करना खासा कठिन है. इसके अलावा लागत के आकलन को लेकर कोई निरंतरता नहीं है. मिसाल के तौर पर वितरण की लागत कितनी होगी और घर मेंं होने वाली वायरिंग, जल प्रबंधन सिंचाई आदि की लागत सब अस्पष्ट हैं.

जमीनी अनुभव

तंजानिया में
यहां लघु विद्युत संयंत्र स्थापित करने के मामले में चर्च मिशन बहुत आगे रहे हैं. माटेंब्वे गांव की पनबिजली योजना इसका उदाहरण है. यहां मिशन के जरिये एक व्यावसायिक केंद्र चलाया जाता है. इस सिस्टम ने 150 किलोवॉट क्षमता का संयंत्र स्थापित किया है और वह 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित दो गांवों को वाणिज्यिक और निजी इस्तेमाल के लिए बिजली उपलब्ध कराती है. इसमें से अधिकांश बिजली का इस्तेमाल व्यावसायिक केंद्र में होता है. पहले कुछ सालों तक दोनोंं गांवों की समितियां इस परियोजना के प्रबंधन के लिए उत्तरदायी थीं. जब इन समितियोंं की क्षमता अपर्याप्त लगने लगी तब प्रबंधन का काम मातेंब्वे ग्राम कंपनी लिमिटेड को सौंप दिया गया. यह कंपनी व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र का भी संचालन करती है. योजना का स्वामित्व एक स्वयंसेवी संगठन डायोसेस, ग्राम प्राधिकार और जिला शासन के पास है. पनबिजली परियेाजना की शुरुआत के बाद से ही राष्ट्रीय ग्रिड ने संबंधत गांवों से संपर्क किया और अब गांव वालों के पास चयन की सुविधा है कि वे ग्रिड की बिजली लेते हैं या पनबिजली. अधिकांश गांववासी सस्ती पनबिजली ही ले रहे हैं.

भारत में
भारत में लघु पनबिजली की अनुमानित संभावना 15,000 मेगावॉट तक की है. अब तक 495 ऐसी परियोजनाएं शुरू की गई हैं जिनकी स्थापित क्षमता करीब 1693 मेगावॉट है. इसके अलावा 170 ऐसी परियोजनाएं क्रियान्वयन के अधीन हैं जिनकी स्थापित क्षमता 479 मेगावॉट है. इन परियोजनाओं के आंकड़े अपारांपरिक ऊर्जा मंत्रालय के पास हैं. उसने अब तक 4233 संभावित स्थानों का चयन किया है जिनकी कुल क्षमता 10,324 मेगावॉट है.

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