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लघु पनबिजली सामान्य पनबिजली से अलग होती है क्योंकि यह नदी के बहाव के साथ छेड़छाड़ नहीं करती है. आमतौर पर इसका आकलन 300 किलोवॉट प्रति घंटा तक की क्षमता के आधार पर किया जाता है. लघु विद्युत व्यवस्था में नदियों पर बांध नहीं बनाए जाते लेकिन इसके बजाय नीचे की ओर आ रही नदी की धारा को एक पाइप की मदद से टर्बाइन में गिराया जाता है. इस टर्बाइन से बिजली बनती है जिसे बैटरियों में संरक्षित किया जा सकता है और जरूरतमंद गांवों में ले जाया जाता है.
समुदाय और पनबिजली
300 किलोवॉट तक की क्षमता के पनबिजली संयंत्र अफ्रीका के कई दूरदराज गांवों को जरूरी बिजली उपलब्ध कराने में सक्षम हैं. इनकी मदद से मक्के की दराई, छोटे कारोबारों और घरों को बिजली देने जैसे काम होते हैं. अफ्रीका के अधिकांश ग्रामीण समुदायों के गांवों में ग्रिड आधारित बिजली आने में कई साल का समय लग सकता है. लेकिन इनमें से अधिकांश गांव नदियों के किनारे रहते हैं. ऐसे में उन गांवों की अपनी खुद की बिजली बनाने में मदद की जा सकती है. इसके लिए खासतौर पर तकनीकी और वित्तीय समर्थन की आवश्यकता होती है. तथा उनको यह निर्देशन देना होता है कि इस संयंत्र की देखरेख कैसे की जाए. एक लघु पनबिजली संयंत्र अपेक्षाकृत कम लागत और कम तकनीक वाला होता है फिर भी यह स्थानीय संसाधनों पर दबाव डाल सकता है. इसकी लागत जगह-जगह पर निर्भर करती है. लेकिन नहर, इनटेक आदि के निर्माण में भौतिक सहयोग से समुदाय इसकी लागत कम कर सकते है.
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किन तरह की परिस्थतियों में यह तकनीक काम में आती है
पारंपरिक बिजली घरों में जहां जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल होता है वहीं लघु पनबिजली परियोजनाओं का वातावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। चूंकि ये बांध या जमा पानी के बजाय बहते पानी पर आधारित होते हैं इसलिए बड़े पैमाने पर चलने वाली पनबिजली परियोजनाओं की तुलना में भी खासे बेहतर होते हैं.
वास्तव में वृक्षों को काटने की जरूरत कम करके तथा खेती को किफायती बनाकर लघु पनबिजली परियोजना स्थानीय वातावरण पर सकारात्मक असर डालती है.
छोटे स्तर पर देखा जाए तो इनके सामने निम्नलिखित गतिरोध आते हैं:
- नीतिगत एवं नियामकीय ढांचा: ऐसी परियोजनाओं के लिए नीति और नियम या तो हैं ही नहीं या फिर एकदम अस्पष्ट हैं. कुछ देशों में पनबिजली का विकास तो हुआ है लेकिन उनका नियमन नहीं है जबकि अन्य देशों में ये ग्रामीण विद्युतीकरण की प्रक्रिया के आम नियामकीय ढांचे का हिस्सा हैं. आम ढांचों में अक्सर पनबिजली आधारित मुद्दों को लेकर समझ का अभाव होता है. इन मुद्दों में पानी, बुनियादी ढांचे की समझ और भुगतान से संबंधित मुद्दे होते हैं.
- वित्तीय मदद: नवीकरणीय ऊर्जा के अन्य स्रोतों से इतर पनबिजली की छोटी परियोजनाओं की शुरुआती लागत अधिक आती है जबकि उसकी परिचालन और रखरखाव लागत कम है. आमतौर पर उपलब्ध वित्त पोषण के मॉडल इसकी मदद नहीं करते. अफ्रीका में ऐसे तमाम मॉडल किसी न किसी तरह दानदाताओं की मदद पर आधारित हैं. वैकल्पिक वित्तपोषण मॉडल के उपाय विकसित करने की आवश्यकता है ताकि इन परियोजनाओं की मदद की जा सके.
- पनबिजली परियोजना की योजना, निर्माण और परिचालन क्षमता: ग्रामीण विद्युतीकरण की दिशा में इन छोटी परियोजनाओ की उपयोगिता को लेकर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय ज्ञान और जागरूकता लगभग नदारद है.इसमें राजनीतिक, सरकारी और नियामकीय संस्थाओं का ज्ञान भी शामिल है. इसके अलावा स्थानीय उत्पादन और घटकों को लेकर जानकारी का अभाव तो है ही.
- जल संसाधनों पर आंकड़े: तकनीक को लेकर सीमित ज्ञान, पानी की उपलब्धता को लेकर पर्याप्त आंकड़ों की कमी के बीच उसके बहाव की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए ताकि परियोजना विकसित की जा सके.
विनिर्माण, परिचालन और रखरखाव
लागत
इन परियोजनाओं की लागत प्रति किलोवॉट क्षमता 1,200 पाऊंड से 4,000 पाऊंड के बीच होती है. ऐसा उपयुक्त तकनीक के प्रयोग के साथ होता है जो कि पारंपरिक तकनीकों की तुलना में खासी सस्ती होती है.
पांच देशों में किए गए परीक्षणों लघु पनबिजली संयंत्रों की पूंजीगत लागत शाफ्ट के हिसाब से नेपाल और जिंबाब्वे में 714 डॉलर और मोजांबिक में 1,233 डॉलर के दरमियान रही. औसत लागत की बात की जाए तो वह प्रति किलोवॉट स्थापित क्षमता के मुताबिक 965 डॉलर रही. यह राशि कुछ अध्ययनों में उल्लिखित राशि के अनुरूप ही है. बिजली उत्पादन योजना की स्थापित क्षमता की लागत बहुत ज्यादा है. प्रति किलोवॉट यह लागत पेरू के पुकारा में 1136 डॉलर, पेरू के ही पेड्रो शहर में 5630 डॉलर है. इसकी औसत स्थापित क्षमता 3,085 डॉलर है.
एक अहम पर्यवेक्षण यह भी है कि प्रति स्थापित किलोवॉट लागत अक्सर उल्लिखित राशि की तुलना में ज्यादा है. ऐसा आंशिक तौर पर लागत के विश्लेषण में आने वाली कठिनाई की वजह से है. लघु पनबिजली की लागत का एक अहम हिस्सा स्थानीय समुदायों के लोगों से श्रम के रूप में मदद लेकर कम किया जा सकता है. स्थानीय मुद्राओं के तेज अवमूल्यन और मुद्रास्फीति को देखते हुए मौद्रिक संदर्भों में लागत कम करना खासा कठिन है. इसके अलावा लागत के आकलन को लेकर कोई निरंतरता नहीं है. मिसाल के तौर पर वितरण की लागत कितनी होगी और घर मेंं होने वाली वायरिंग, जल प्रबंधन सिंचाई आदि की लागत सब अस्पष्ट हैं.
Field experiences
- There are approximately 130 MHP plants66 currently in operation in Sri Lanka. Most are less than 100 kW in capacity.
- The Tungu-Kabiri community hydro project.
In Tanzania
Church missions have been at the forefront with regard to installing microhydro systems. An example is the Matembwe village hydro scheme, which powers a vocational center run by a mission. The system has an installed capacity of 150 kW and supplies electricity for commercial uses and individual households in two villages located 5 km apart, with the bulk of the electricity being used at the vocational center. For the first few years, two village committees were responsible for managing the project. As the capacity of these committees was found to be insufficient, management was handed over to the Matembwe Village Co. Ltd., who manages the vocational training centre. The ownership of the scheme is shared by the Diocese, an NGO, the village authority and the District Authority. Since the inception of the hydro project, the national grid has reached the villages concerned and the villagers now have the choice between electricity from hydropower or from the grid, with most of them staying with the cheaper local hydropower option.
In India
India has an estimated SHP potential of about 15 000 MW. So far, from 495 SHP projects, an aggregate installed capacity of 1693 MW has been installed. Besides these, 170 SHP projects with an installed capacity of 479 MW are under implementation. The database for SHP projects created by the Ministry of Non-Conventional Energy Sources (MNES) now includes 4233 potential sites, with a total capacity of 10 324 MW.
Manuals, videos, and links
Videos
- Hydroelectricity - Small hydroelectric power plants. EMAS methods. (The 4th video above, but with sound)
Other resources
- A case against small hydropower. Small hydel projects are often hailed as sustainable models of power production but they spark an equal number of contentious issues much like the bigger projects.
- Micro hydro projects to light up villages in Northeast
- BLOG: The Rise of Micro-Hydro Projects in Africa.
- Micro-Hydro Powers Rural Development in Cameroon.
- Article: Can micro hydro boost economic development in rural Africa?
- Small Scale Hydro: Here are some good references for planning, designing, and building a micro-hydro system. The first step is to carefully determine if you have a hydro resource that is worth developing -- some of the references cover how to do this in detail.
- S.D.B. Taylor and D. Upadhyay. Sustainable markets for small hydro in developing countries. Hydropower & Dams Issue Three, 2005. IT Power, UK.
Acknowledgements
- Smail Khennas and Andrew Barnett, BEST PRACTICES FOR SUSTAINABLE DEVELOPMENT OF MICRO HYDRO POWER IN DEVELOPING COUNTRIES, Department for International Development, UK. March 2000.
- Small Hydro a Potential Bridge for Africa’s Energy Divide. International Rivers. August 23, 2012.
- Micro-hydro power. Practical Action.