Difference between revisions of "वाटर पोर्टल / वर्षाजल संचयन / भूजल पुनर्भरण / रिसन-इन्फिल्ट्रेशन कुंए"

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Generally, it is recommended that minimum tillage practices be adopted to maximize the lifespan of the well. If a well gets clogged, the first 30 cm of the porous material is replaced to improve the infiltration capacity.
 
  
Organic filtering materials decompose gradually over time. Because of better oxygenation conditions near the ground surface, decomposition is faster in the upper part of the well. In wood-chip wells, it is generally necessary to add more wood chips every 10 years to compensate for subsidence caused by the decomposition of the material in place. Given its lower carbon/nitrogen ratio and high cellulose content, straw decomposes much faster and must be replaced more frequently. Coarse sand can also be used to replace decomposed material in both cases.
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आमतौर पर यह अनुशंसा की जाती है कि कुंए का जीवन चक्र अधिकतम करने के लिए जमीन में पलटाव न्यूनतम होना चाहिए. अगर कुंआ जाम हो जाता है तो पहले 30 सेंटीमीटर तक ऐसी सामग्री डाली जानी चाहिए ताकि रिसाव की क्षमता में सुधार आए.
Lastly, infiltration wells and separate drain outlets must be inspected frequently to evaluate the condition of the structures as well as their efficiency in improving surface drainage and reducing erosion problems.
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फिल्टर के रूप में अगर ऑर्गेनिक पदार्थों का इस्तेमाल किया गया तो वे समय के साथ खुदबखुद अपघटित होने शुरू हो जाते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि जमीन की सतह के निकट ऑक्सीकरण की प्रक्रिया बेहतर होती है. इस वजह से कुंए के ऊपरी इलाके में अपघटन तेज गति से होता है. लकड़ी के फट्टों से बने कुंओं में आमतौर पर हर 10 साल मेंं नए फट्टे लगाने पड़ते हैं. यह रखरखाव की प्रक्रिया का हिस्सा है क्योंकि पुराने फट्ूे टूटने शुरू हो जाते हैं. इसके कम कार्बन और नाइट्रोजन अनुपात और उच्च सेल्युलोज अनुपात को देखते हुए कहा जा सकता है कि अपघटन अत्यंत तेज गति से होता है और लकडिय़ों को और भी जल्दी-जल्दी बदलना पड़ सकता है. दोनों ही मामलों में अपघटित पदार्थों को बदलने के लिए मोटी बालू का भी प्रयोग किया जा सकता है. आखिर में, रिसन-इन्फिल्ट्रेशन कुंए और अलहदा नाली व्यवस्था का नियमित अंतराल पर निरीक्षण भी किया जाना चाहिए. ताकि ढांचों की स्थिति का समयानुसार आकलन किया जा सके. ऐसा करने से नाली की दिक्कतों और क्षरण की समस्या से बचा जा सकता है.
  
 
===Manuals, videos and links===
 
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Revision as of 13:46, 5 December 2015

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Infiltration wells.png
Infiltration well in Madagascar. Eric Fewster, BushProof.

जल रिसन-इन्फिल्ट्रेशन कुंए दरअसल उथले कुंए होते हैं जो पानी को किसी नदी तल से इतर प्राकृतिक रूप से संधारित करते हैं. लेकिन इनका एक निश्चित स्वरूप होता है. इनका इस्तेमाल किसी जल भराव क्षेत्र से पानी को आकृष्ट करने के लिए किया जा सकता है या फिर भूजल को रिचार्ज करने के लिए. खासतौर पर उन इलाकों में जहां हल स्रोतों के रिचार्ज की दर पथरीली सतह या जमीन की पारगमयता कम होने के कारण उचित नहीं होती. अगर सतह ऐसी हुई तो यह कुआं इससे कहीं नीचे के स्तर पर जाकर गहरा किया जाता है. इन कुओं से पानी निकालना तो द्वितीयक गतिविधि है. क्योंकि न केवल इसका स्तर बहुत कम होता है बल्कि इससे बहुत सीमित जल निकाला जा सकता है.

ऐसे कुओं में सीधा जल प्रवाह नहीं होता (हालांकि ऐसा हो सकता है) इस वजह से ये आमतौर पर एक बड़े आकार के गड्डे के रूप में रहते हैं जिनको प्राकृतिक दरदरी चीजों से भरा जाता है ताकि जमीन की जल रिसाव क्षमता बढ़ सके और अधिकांश मामलों में जमीन की सतह और भूमिगत पाइपिंग का एक घेरा सा भी बनाया जाता है.यह घेरेदार व्यवस्था पानी को अपने भीतर आने देती है जहां पानी अपेक्षाकृत तेज गति से प्रवाहित होता है. यह तेज बारिश के बाद होने वाले बहाव को एक तरह का सुरक्षा घेरा मुहैया कराता है. इस व्यवस्था के होने पर अगर पानी बहुत तेज गति से बरसा तो भी उसे बेकार बह जाने देने के बजाय कुंए अथवा जल स्रोत में आकृष्ट किया जा सकता है या उसका रिसाव सुनिश्चित किया जा सकता है.

छानने वाले पदार्थ के रूप में चट्टानों, लकड़ी के टुकड़ों या फिर तिनकों आदि का प्रयोग किया जा सकता है. लकड़ी का इस्तेमाल करके बनाए गए कुंए पारगमन वाली मेढ़ों की तरह होते हैं और उनमें घेरेदार नाली नहीं बनाई जाती है. इससे उनकी रिसाव क्षमता जरूर सीमित हो सकती है. इनमें से पानी को निकालने के लिए हैंडपंप Handpumps या छोटे आकार के मोटर पंप Small and efficient motor pumps का इस्तेमाल किया जा सकता है. हैंडपंप सिलिंडरों की बात करें तो उनको इन कुओं में लगाई गई जाली के भीतर फिट करना होता है.

किन तरह की परिस्थतियों में यह तकनीक काम में आती है

  • ऐसी जगह जहां भूजल स्तर पांच मीटर से अधिक नीचे न हो और जहां मिट्टी की प्रकृति स्थिर हो.
  • छोटे समुदायों के लिए और ऐसी जगह पर जहां पानी की मांग कम हो.
  • ऐसी जगहों पर इसे स्थापित न करें जहां पानी तेज गति से बहता है. क्योंकि संधारण कुओं की रिसाव क्षमता काफी कम होती है.बहाव की गति अपर्याप्त होगी तो संभावित कटाव की क्षमता से इनकार नहीं किया जा सकेगा.

प्रदूषण से बचाव करें

इन कुओं को प्रदूषण का स्रोत बनने वाले स्थानों से खासा दूर निर्मित करना चाहिए. सूक्ष्म जैविक संक्रमण को रोकने के लिए प्रदूषण के संभावित स्रोतों और इन जालीदार कुंओं के बीच कम से कम इतनी दूरी रहनी चाहिए कि मैदान पर रेंगने वाले जीवों को यह दूरी तय करने में कम से कम 25 दिन का वक्त लगे. उनका यह दूरी करना जमीनी की सांद्रता, जलीय स्थिति, पारगमनता आदि सभी बातों पर निर्भर करता है.

मध्यम आकार की बालू जिसमें औसत रिसाव क्षमता हो, वहां 30 मीटर की दूरी को 25 दिन में तय होने लायक माना जा सकता है. लेकिन जमीन की प्रकृति के आधार पर इसे 100 मीटर तक माना जा सकता है. बहरहाल, पानी से संक्रमण की दूरी उन जगहों पर तेजी से कम हो सकती है जहां जालीदार जल स्रोत काफी गहराई पर स्थित हो. ऐसा जल स्रोत की प्रकृति में तमाम तरह के अंतर की बदौलत होता है.मिसाल के तौर पर हैंडपंप वाले गहरे बोर वेल को लैट्रिन के करीब भी बनाया जा सकता है. लेकिन निकासी की दर के साथ ही छन्ने की गहराई भी बढ़ाई जानी चाहिए.


लाभ नुकसान
- पूर्ण किनारी वाला कुंआ बनाने की तुलना में कम लागत.

- पूर्ण कुंए की तुलना में अपेक्षाकृत तेज गति से निर्माण.
- कम पानी वाले जल स्रोतों के लिए बेहतर.
- चूंकि यह बहुत उन्नत तकनीक नहीं है इसलिए गांव वाले आसानी से भागीदारी कर सकते हैं. इसको बहुत अधिक निगरानी की आवश्यकता भी नहीं होती.

- निकालने के लिए बहुत अधिक पानी का उपलब्ध न होना.

- रखरखाव के समय या किसी समस्या के पहले कुंए में पहुंच आसान नहीं. - खुदाई के साथ किनारी बनाना आसान नहीं. ऐसे में अगर मिट्टी में स्थिरता नहीं हुई तो सुरक्षा को लेकर खतरा.

पर्यावरण संबंधी बदलावों को लेकर लचीलापन

सूखा

सूखे के प्रभाव: कम बारिश के कारण जल स्रोत में कम रिसाव होता है, जबकि आबादी और पानी की मांग में लगातर इजाफा हो रहा है. जल स्रोतों का आकार- बालू की मात्रा, जलस्तर में बहुत अधिक गहराई का न होना, गलत जगह का चुनाव पाइप के इर्द गिर्द सही ढंग से ग्रेडिंग का न किया जाना.

इसकी वजह: : कम बारिश के कारण जल स्रोत में कम रिसाव होता है, जबकि आबादी और पानी की मांग में लगातर इजाफा हो रहा है. जल स्रोतों का आकार- बालू की मात्रा, जलस्तर में बहुत अधिक गहराई का न होना, गलत जगह का चुनाव पाइप के इर्द गिर्द सही ढंग से ग्रेडिंग का न किया जाना.

डब्ल्यूएएसएच-वाश सिस्टम का लचीलापन बढ़ाने के लिए: भूजल बांध के निर्माण के जरिए मात्रा में इजाफा किया जाना चाहिए. कुंओं को गहरा बनाएं और पाइप भी गहरे धंसाएं. जल स्तर के हिसाब से समय-समय पर कुंओं का पानी निकालना. कुंए के बाद वाले आधे हिस्से का निर्माण सूखे मौसम में करें. नदी तल के वे हिस्से जो साल के एक हिस्से में सूखे रहते हैं और पानी एक खास हिस्से में एकत्रित रहता है. वहां रिसाव वाले कांक्रीट का इस्तेमाल करके पानी का बहाव बढ़ाया जाता है. इसके अलावा जल स्रोत में इस्पात की पाइपों के जरिए भी पानी पहुंचाया जा सकता है. इसे नदी के उस हिस्से में होना चाहिए जहां रिसाव न हो. पाइप इस तरह लगाया जाना चाहिए ताकि पानी का बहाव तेज रह सके जबकि गंदगी का जमाव न्यूनतम हो.

सूखे के प्रबंधन पर अधिक जानकारी: सूखा प्रभावित क्षेत्रों में लचीला वॉश सिस्टम का प्रयोग.

विनिर्माण, परिचालन और रखरखाव

सीमेंट के बारे में सामान्य सलाह: बांध, टैंक, जलमार्गों, कुओं आदि के ढांचों में दरारें आने की एक आम वजह है सीमेंट के मिश्रण और उसके प्रयोग में गलतियां. सबसे पहले, यह बात महत्त्वपूर्ण है कि केवल विशुद्ध सामग्री का प्रयोग किया जाए. यानी स्वच्छ पानी, साफ बालू, साफ पत्थर आदि. पदार्थों को अत्यंत समग्र रूप से मिलाया जाना चाहिए. दूसरी बात, मिश्रण में पानी की न्यूनतम मात्रा मिलाई जानी चाहिए. कंक्रीट या सीमेंट को लगभग शुष्क तरीके से कामचलाऊ लगाना चाहिए. उसे किसी भी हालत में गीला नहीं बनाया जाना चाहिए. तीसरी बात, यह बात जरूरी है कि तरावट करने के दौर में सीमेंट या कंक्रीट को हमेशा नम बनाए रखा जाना चाहिए. कम से कम एक सप्ताह तक लगातार तराई की जानी चाहिए. ढांचों को प्लास्टिक, बड़ी पत्तियां या अन्य पदार्थों से ढक दिया जाना चाहिए.

निर्माण

Infiltration well filled with straw.
Source : Georges Lamarre (MAPAQ)
  • निर्माण की शुरुआत एक गड्ढा खोदने के साथ होती है. यह खुदाई एक स्थिर मिट्टी वाले क्षेत्र में की जाती है. जिसके ढहने का कोई खतरा न हो. सुरक्षा कारणों से खुदाई 5 मीटर से अधिक गहरी नहीं होनी चाहिए.
  • खुदाई काम जारी रहता है लेकिन जल स्रोत में पानी कम होने पर खुदाई का काम बिना पानी को बाल्टियों से बाहर किए भी जारी रखा जा सकता है.
  • कुंए में दोबारा पानी भरने से ऐन पहले वहां एक इनटेक स्थापित किया जाना चाहिए. यह साधारण तौर पर एक जाली हो सकती है जो केसिंग से जुड़ी हो. इसका व्यास इतना होना चाहिए कि हैंडपंप का सिलिंडर उसमें आसानी से समा सके. इसे स्थापित करने के कई तरीके हैं:
  1. जल स्तर की सीमा के भीतर उपयुक्त पदार्थों एक चैंबर का निर्माण किया जा सकता है. उसे स्लैब से ढंका जा सकता है. इनटेक पाइप को स्लैब के जरिए लगाया जाता है. इसके बाद उस छिद्र में पानी भरा जा सकता है. इनटेक वाले हिस्सों को और अधिक बंाटा जा सकता है.
  2. एक अपेक्षाकृत कम लागत वाला तरीका यह भी है कि इनटेक को एक खाली गड्ढे में स्थाापित किया जाए. इसके बाद छेद को मिट्टी रहित बालू से भर दिया जाता है. बालू उस ऊंचाई तक भरी जाती है जिस ऊंचाई तक वर्षा के दिनों में पानी का स्तर रहता है. उसके बाद उस छेद में असली मिट्टी भरी जाती है. इस तरीके से इनटेक के इर्दगिर्द एक कृत्रिम जलाशय बन जाता है. तब कुंए का स्तर बालू के स्तर के बराबर हो हजाता है.
  3. उसके बाद इनटेक जाली के भीतर एक पंप स्थापित किया जा सकता है.
  • सूखे के दिनों में जहां कुंए सूख जाते हैं उस वक्त रिचार्ज तकनीक का इस्तेमाल कुएं में पानी की मात्रा सुधारने के लिए किया जा सकता है.

पत्थर और लकड़ी की चिप्पियों के जरिए जल रिसाव

Infiltration well filled with rock or wood chips - soil not tilled. For more options like this see [Infiltration wells Factsheet].

कुंए में जल रिसाव तय करने के लिए चुनी गई जगह पर करह्वीब एक से डेढ़ मीटर व्यास वाला और तकरीबन एक मीटर गहरा गड्ढा खोदा जाना चाहिए. अगर कुंए का निर्माण बलुआ अथवा बालू मिश्रित जमीन में पत्थर से किया गया है तो खोदे गए गड्ढे को जियोटेक्सटाइल झिल्ली से ढका जा सकता है. यह झिल्ली पत्थर का जमाव रोकती है और यह चिपकाने वाले टेप की मदद से यह उस जगह पर चिपकी होती है जहां नाली इसे समकोण पर काटती है. कुंए का काम पूरा हो जाने के बाद अगर मिट्टी को ऊपर लाना होता है तो इस झिल्ली को मिट्टी की सतह से करीब 30 सेंटीमीटर नीचे काटा जाता है. यदि ऐसा नहीं किया गया तो झिल्ली मिट्टी की सतह के ऊपर तक आ सकती है. यह बात ध्यान देने वाली है कि लकड़ी की चिप्पी वाले कुंओं में ऐसी झिल्ली का प्रयोग नहीं किया जाता है.

खुदाई को बाद में मनोवांछित सामग्री से भर दिया जाता है. इस नाली को भी रिसाव वाली सामग्री से भरा जाता है और उसे छेद मे डाल दिया जाता है. वहीं पत्थर से बने कुंओं में दोबारा भराई की शुरुआत 56 मिमी के पत्थर से करने की अनुशंसा की जाती है. हालांकि 19 मिमी तक के पतले पत्थर का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

नाली को वांछित ऊंचाई पर काटा जाता है और उसके आखिर में एक कैप लगा दी जाती है. अगर काम पूरा हो जाने के बाद मिट्टी को ऊपर लाना होता है तो तो कॉइल वाले पाइप लगाने का काम 30 सेमी के बाद बंद कर दिया जाना चाहिए.ताकि मिट्टी उठाने की प्रक्रिया में पाइप को नुकसान न पहुंचे. पत्थर के कुंए को दोबारा भरने का काम ऐसी सामग्री की मदद से पूरा किया जाता है जो उठापटक करने वाले उपकरणों से खराब न होने पाए. इसमें मोटी मिट्टी, लकड़ी की चिप्पियां और 19 मिमी का साफ पत्थर आदि सभी चीजें शामिल हैं. जियोटेक्स्टाइल झिल्ली की बात करें तो उसे लगाने की अनुशंसा नहीं की जाती है क्योंकि वह सतह से बहकर आने वाली गाद से तत्काल जाम हो जाएगा. लकड़ी की चिप्पी वाले कुंए आमतौर पर इन्हीं चिप्पियों से दोबारा भरे जाते हैं.

जहां क्षरण की दर ज्यादा है और जमाव का जोखिम भी ज्यादा है वहां इस बात को प्राथमिकता दी जाती है कि संधारण कुओं के ऊपर की मिट्टी को उलटा पलटा न जाए. ऐसे में कुएं के आसपास 3 मीटर इलाके में घास उगा दी जानी चाहिए. ताकि मिट्टी के कण छन जाएं और उथली हुई मिट्टी और रिसन-इन्फिल्ट्रेशन कुंए के बीच एक बफर वाला इलाका बन जाए. इन कुओं को पत्थर (100 मिमी के साफ पत्थर) से भी ढका जा सकता है.

Permeability of some types of rock (meters/day)

Type of rock Permeability

(m/d)

gravel 100 - 1000
mixed sand and gravel 50 - 100
coarse sand 20 - 100
fine sand 1 - 5
fractured or weathered rock 0 - 30
sandstone 0.1 - 1.0
clay 0.01 - 0.05
shale negligible
limestone negligible
solid rock negligible

रखरखाव-मेंटिनेंस

आमतौर पर यह अनुशंसा की जाती है कि कुंए का जीवन चक्र अधिकतम करने के लिए जमीन में पलटाव न्यूनतम होना चाहिए. अगर कुंआ जाम हो जाता है तो पहले 30 सेंटीमीटर तक ऐसी सामग्री डाली जानी चाहिए ताकि रिसाव की क्षमता में सुधार आए.

फिल्टर के रूप में अगर ऑर्गेनिक पदार्थों का इस्तेमाल किया गया तो वे समय के साथ खुदबखुद अपघटित होने शुरू हो जाते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि जमीन की सतह के निकट ऑक्सीकरण की प्रक्रिया बेहतर होती है. इस वजह से कुंए के ऊपरी इलाके में अपघटन तेज गति से होता है. लकड़ी के फट्टों से बने कुंओं में आमतौर पर हर 10 साल मेंं नए फट्टे लगाने पड़ते हैं. यह रखरखाव की प्रक्रिया का हिस्सा है क्योंकि पुराने फट्ूे टूटने शुरू हो जाते हैं. इसके कम कार्बन और नाइट्रोजन अनुपात और उच्च सेल्युलोज अनुपात को देखते हुए कहा जा सकता है कि अपघटन अत्यंत तेज गति से होता है और लकडिय़ों को और भी जल्दी-जल्दी बदलना पड़ सकता है. दोनों ही मामलों में अपघटित पदार्थों को बदलने के लिए मोटी बालू का भी प्रयोग किया जा सकता है. आखिर में, रिसन-इन्फिल्ट्रेशन कुंए और अलहदा नाली व्यवस्था का नियमित अंतराल पर निरीक्षण भी किया जाना चाहिए. ताकि ढांचों की स्थिति का समयानुसार आकलन किया जा सके. ऐसा करने से नाली की दिक्कतों और क्षरण की समस्या से बचा जा सकता है.

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