वाटर पोर्टल / वर्षाजल संचयन / यथास्थान वर्षाजल संचयन

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जोधपुर, राजस्थान में वर्षाजल संचयन कार्यस्थल. फोटो: ग्रीनफील्ड इको सॉल्यूशन प्रा. लि.

शुष्क और अर्ध-शुष्क इलाकों में जहां बारिश बहुत कम होती है, बारिश के मौसम में अधिक से अधिक वर्षाजल संचित करके रखना पड़ता है ताकि बाद में इसका इस्तेमाल किया जा सके, खास तौर पर खेती और घरेलू इस्तेमाल के लिए. वर्षाजल संचयन का एक उपाय जो सबसे अधिक इस्तेमाल में लाया जाता है वह है कार्यस्थल पर यानी जहाँ जरूरत हो वहीं वर्षाजल का भंडारण (यथास्थान वर्षाजल संचयन). अपेक्षाकृत गहराई वाले इलाके वर्षाजल के संचयन के लिए आदर्श होते हैं. यह तरीका ब्राजील, आर्जेंटीना और पराग्वे के शुष्क और अर्ध-शुष्क इलाकों में मुख्यतः सिंचाई के मकसद से इस्तेमाल में लाये जाते हैं. कार्यस्थल वाली तकनीक में पानी वहीं जमा किया जाता है, जहां उसका इस्तेमाल होना है.

सामान्यतः यह तकनीक सरल और इस्तेमाल में आसान होती है. अमूमन सरकारी संस्थान और खेतिहर समुदाय मिल कर कार्यस्थल पर वर्षाजल संचयन की तकनीक को बढ़ावा देते हैं. उपयोगकर्ताओं को इस तकनीक के लाभ और वर्षाजल संचयन को लागू करते हुए मृदा की क्षति से बचाव के उपाय के बारे में सूचित करने के लिए शैक्षणित और सूचनापरक कार्यक्रम उपलब्ध कराये जाने चाहिये.

उपयुक्त परिस्थितियां

इस तकनीक से शुष्क और अर्धशुष्क इलाकों में सिंचाई के लिए जल की उपलब्धता बढ़ जाती है. यह मक्के, कपास, ज्वार और कई अन्य फसलों को उगाने के लिए विकसित प्रबंधकीय उपायों को बढ़ावा देता है. इसके जरिये हमें पालतू जानवरों और घरेलू इस्तेमाल के लिए भी अतिरिक्त जल उपलब्ध हो जाता है.

यह शुष्क और अर्धशुष्क इलाकों की निचली सतह में लागू किया जा सकता है.

पूर्वोत्तर ब्राजील, पराग्वे के चाको और आर्जेंटीना के इलाकों में इस तकनीक का अत्यधिक इस्तेमाल होता है. यह फसल, पालतू पशुओं और घरेलु इस्तेमाल के लिए जलापूर्ति को बढ़ावा देता है. खेती में मशीनों का इस्तेमाल बढ़ने की वजह से इसका उपयोग बहुत कम होने लगा है, लेकिन उन इलाकों में जहां बारिश बहुत कम होती है यह अभी भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इस्तेमाल किया जाने वाला तरीका प्राथमिक तौर पर उपकरणों की उपलब्धता, खेती और पशुपालन की पद्धतियां और मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करता है.

सांस्कृतिक स्वीकार्यता

वर्षाजल संचयन की यह पद्धति पूर्वोत्तर ब्राजील, पराग्वे और आर्जेंटीना के इलाकों में बरसों से इस्तेमाल की जाती रही है. दूसरे इलाकों के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्र इस पद्धति को अपना कर आसानी से इस तकनीक को अपना कर अपनी खेती का विकास कर सकते हैं और उत्पादकता बढ़ा सकते हैं.

लाभ हानि
- इस तकनीक में अतिरिक्त श्रम की बहुत कम आवश्यकता होती है.

- इसे कभी भी लागू किया जा सकता है, रोपणी के पहले भी और बाद में भी.
- वर्षाजल संचयन के जरिये सिंचाई के लिए वर्षाजल का बेहतरीन इस्तेमाल होता है, खास तौर पर ढलान वाले खेतों में.
- वर्षाजल संचयन की खेती की बेहतरीन प्रबंधन पद्धतियों से तुलना की जा सकती है, जैसे फसल चक्र परिवर्तन.
- यह मृदा उपयोग के मामले में अतिरिक्त लचीलापन उपलब्ध कराता है.
- इस पद्धति के जरिये कृत्रिम तौर पर भूजल एक्विफायर का भी पुनर्भरण किया जा सकता है.

- इस वर्षाजल पद्धति की वहां लागू नहीं किया जा सकता जहां ढलान 5 फीसदी से अधिक हो.

- पथरीली मिट्टी में इसे लागू करना मुश्किल होता है.
- पत्थर और पेड़ों से ढके इलाकों में इसे लागू करने से पहले उसे साफ करना पड़ता है.
- इस तकनीक को लागू करने में जो अतिरिक्त व्यय होता है वह कुछ किसानों के लिए महत्वपूर्ण मसला होता है.
- इसे प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए शुष्क जमीन और गहराई वाले इलाकों की जरूरत होती है.
- बारिश के नहीं होने पर जमा पानी वाष्पीकृत हो जाता है, जिससे इसकी प्रभावोत्पादकता कम हो जाती है.


संरचना और निर्माण

हर वर्षाजल संचयन तंत्र के तीन पहलू होते हैं : एक संग्रहण क्षेत्र, एक परिवहतन तंत्र और एक भंडारण क्षेत्र. इस व्यवस्था में संग्रहण और भंडारण उसी भूसंरचना में उपलब्ध कराया जाता है. गहराई वाली भूसंरचना संग्रहण और भंडारण के लिए आदर्श क्षेत्र मानी जाती है. कई परिस्थितियों में ऐसे इलाकों में रिसाव नहीं होता है, ये चिकनी मिट्टी से ढकी होती हैं, ताकि कम से कम पानी बाहर रिसे. ब्राजील में कार्यस्थल पर वर्षाजल संचयन की प्रक्रिया, जिनमें कृषि क्षेत्र में कार्यस्थल तैयारी शामिल है, का जिक्र नीचे है.

गहराई वाली भूसंरचना का वर्षाजल संचयन क्षेत्र के रूप में उपयोग

पराग्वे में गहराई वाली भूसंरचना जिसका उपयोग वर्षाजल संचयन के तौर पर होता है को ताजामेयर्स कहते हैं. ताजामेयर्स उन इलाकों में बनाये जाते हैं जहां चिकनी मिट्टी कम से कम तीन मीटर गहरी हो. ताजामेयर्स से भंडारण क्षेत्र में और फिर वहां से खेतों में नहर वितरणी के जरिये पानी पहुंचाया जाता है. संग्रहण और भंडारण क्षेत्र की घेराबंदी की जाती है ताकि पशु पानी को दूषित न कर दें. यह तकनीक अमूमन चिकनी मिट्टी से बने भंडारण टैंक से जुड़ी होती है. इसमें कार्यस्थल पर वर्षाजल संचयन क्षेत्र से पानी पंप के जरिये भंडारण टैंक तक पहुंचाया जाता है, यह अमूमन विंडमिल के जरिये संचालित होता है, जैसा चित्र 1 में बताया गया है.

चित्र 1. गहरे इलाके में वर्षाजल संचयन (ताजामेयर). स्रोत : यूजीनियो गोदोय वी., नेशनल कमीशन ऑन इंटीग्रेटेड रीजनल डेवलपमेंट ऑफ द पराग्वेयन चाओ, फिलाडेल्फिया, पराग्वे.

ताजामेयर्स में जमा पानी का इस्तेमाल सामान्यतः पशुओं को पानी पिलाने के लिए किया जाता है और सफाई और क्लोरीन डालने के बाद इन्हें घरेलू उपभोग के लिए भी प्रयोग में लाया जा सकता है. व्यक्तिगत ताजामेयर्स भी अक्सर भूजल स्रोतों के कृत्रिम पुनर्भरण के लिए इस्तेमाल में लाये जाते हैं. पराग्वे चाको में बने ताजामेयर्स हर साल 6800 घन मीटर भूजल पुनर्भरण करते हैं.

वर्षाजल भंडारण क्षेत्र के रूप में नालियों का इस्तेमाल

बबूल के नये पौधों के चारो ओर बनी अर्धचंद्राकार नालियां वर्षाजल को ग्रहण और भंडारण करती हुईं. फोटो- FAO - फाओ- टीएफ शाक्सोन

नालियां कार्यक्षेत्र में कृषि कार्य के लिए वर्षाजल का संचय करने हेतु प्रयोग में लायी जा सकती हैं. ये पौधों को लगाये जाने से पहले भी और उसके बाद भी बनायी जा सकती हैं, ताकि इनके पानी का इस्तेमाल भविष्य में किया जा सके. भूसंरचना की गहराइयों में विविधता के मद्देनजर खेतों में ही फसलों की कतारों के बीच पानी संरक्षित करने के लिए यह तरकीब इस्तेमाल की जाती है. इन नालियों में हर दो-तीन मीटर पर कीचड़ के डैम बनाये जा सकते हैं ताकि पानी को लंबे समय तक रोका जा सके और मृदा अपरदन और पानी के धरती में अत्यधिक अवशोषण को रोका जा सके. खेतों की पगडंडियां भी नालियों में पानी को रोकने के लिए मददगार हो सकती हैं, या कतारों के बीच गैर कृषियोग्य जमीन छोड़ी जा सकती है, यह एक मीटर तक हो सकती है ताकि इस जमीन पर गिरने वाले जल को नालियों में लाया जा सके.

The Guimarães Duque

The Guimarães Duque method was developed in Brazil during the 1950s, and uses furrows and raised planting beds, on which cross cuts to retain water are made using a reversible disk plow with at least three disks. The furrows are usually placed at the edge of the cultivation zone.

Costs, operation & maintenance

This technology requires very little maintenance once the site is chosen and prepared. Maintenance is done primarily during the course of normal, day-to-day agricultural activities, and consists primarily of keeping the collection area free of debris and unwanted vegetation. Where only parts of the rows are cultivated, rotating the areas that are plowed will enable more efficient maintenance of the available storage area.

The costs of in situ rainwater collection systems are minimal. The main cost of this technology is in the equipment and labor required to build the fences and furrows. Table 1 shows representative costs reported for different methods of site preparation in cultivated areas of Brazil. Further, the construction cost of a tajamar in Paraguay has been reported at $4,500. This cost includes not only the cost of soil preparation, but also the cost of ancillary equipment such as the storage tank and windmill shown in the set up in Figure 1.


Table 1. Estimated Cost ($) of Different Site Preparation Methods for Rainwater Collection Areas in Agricultural Areas of Brazil.

Method Basic Equipment Animal Traction Total Hourly Cost of Implementation
Flat terrain trenches 150.00 300.00 450.00 0.96
Post-planting furrows 80.00 300.00 380.00 0.90
Pre-planting furrows 180.00 70.00 250.00 0.90
Furrows with barriers 180.00 70.00 250.00 0.90
Inclined raised beds 1,500.00 1,000.00 2,500.00 12-15
Furrows in partial areas 100.00 80.00 180.00 0.70
Guimarães Duque method ... ... ... 12-15


Further Development of the Technology

The equipment used in the construction of the furrows and storage areas must be improved. Relatively inexpensive plows and tractors can reduce the cost of implementation and contribute to the more widespread use of this technology by small farmers. New methods of soil conservation should be explored.

Manuals, videos, and links

Contacts

  • José Barbosa dos Anjos, Empresa Brasileira de Pesquisa Agropecuaria (EMBRAPA), Centro de Pesquisa Agropecuaria do Trópico Semi-Árido (CPATSA), BR-428 km 152, Zona Rural, Caixa Postal 23, 56300-000 Petrolina, Pernambuco, Brasil. Tel. (55-81)862-1711. Fax (55-81)862-1744. E-mail: [email protected].
  • Everaldo Rocha Porto, Empresa Brasileira de Pesquisa Agropecuaria (EMBRAPA), Centro de Pesquisa Agropecuaria do Trópico Semi-Árido (CPATSA), BR-428 km 152, Zona Rural, Caixa Postal 23, 56300-000 Petrolina, Pernambuco, Brasil. Tel. (55-81)862-1711. Fax (55-81)862-1744. E-mail: [email protected].
  • Luiza Teixeira de Lima Brito, Empresa Brasileira de Pesquisa Agropecuaria (EMBRAPA), Centro de Pesquisa Agropecuaria do Trópico Semi-Árido (CPATSA), BR-428 km 152, Zona Rural, Caixa Postal 23, 56300-000 Petrolina, Pernambuco, Brasil. Tel. (55-81)862-1711. Fax (55-81)862-1744. E-mail: [email protected].
  • Eduardo Torres, Instituto Argentino de Investigaciones de las Zonas Aridas (IADIZA), Dependiente del Consejo Nacional de Ciencia y Tecnologia (CONICET), Universidad Nacional de Cuyo y Gobierno de la Provincia de Mendoza, Casilla de Correo 507, 5500 Mendoza, República Argentina. Fax (54-61)287955.
  • Maria Sonia Lopes da Silva, Empresa Brasileira de Pesquisa Agropecuaria (EMBRAPA), Centro de Pesquisa Agropecuaria do Trópico Semi-Árido (CPATSA), BR-428 km 152, Zona Rural, Caixa Postal 23, 56300-000 Petrolina, Pernambuco, Brasil. Tel. (55-81)862-1711. Fax (55-81)862-1744. E-mail: [email protected].
  • Aderaldo de Souza Silva, Empresa Brasileira de Pesquisa Agropecuaria (EMBRAPA), Centro Nacional de Pesquisa de Monitoramento e Avaliacao de Impacto Ambientalt (NPMA), Rodovia SP-340 km 127.5, Bairro Tanquinho Velho, Caixa Postal 69, 13820-000 Jaguariuna, São Paulo, Brasil. Tel.(55-4198)67-5633. Fax (55-4198)67-5225.
  • Large wiki on water use for agriculture: Agropedia

Acknowledgements

Source Book of Alternative Technologies for Freshwater Augmentation in Latin America and the Caribbean. 1.2 Rainwater harvesting in situ. UNEP - International Environmental Technology Centre United Nations Environment Programme. Unit of Sustainable Development and Environment General Secretariat, Organization of American States, Washington, D.C., 1997.