वाटर पोर्टल / वर्षाजल संचयन / भूजल पुनर्भरण / कंटूर मेड़बंदी

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कंटूर मेड़ें. फोटो: मेक ए मार्क.

कंटूर मेड़बंदी, जिन्हें कई दफा कंटूर फरोज या माइक्रो वाटरशेड भी कहा जाता है, का इस्तेमाल फसल उत्पादन के लिए किया जाता है. कंटूर के बाद मेड़बंदी आमतौर पर 1 से 2 मीटर की दूरी पर होती हैं. बारिश का पानी मेड़बंदी के बीच में गैरकृषि भूमि की क्यारियों में जमा किया जाता है और उनका भंडारण मेड़ के ठीक ऊपर की नालियों में किया जाता है. नालियों के दोनों किनारों पर फसलें उगायी जाती हैं.

बहुत कम लंबे जलग्रहण क्षेत्र में जमा बारिश के पानी से उपज काफी बेहतर होती है और जब डिजाइन व निर्माण सही ढंग से किया गया हो तो सिस्टम से बाहर अपवाह का कोई नुकसान नहीं होता है. इसका एक और लाभ यह है कि पैदावार समान रूप से होती है, क्योंकि हर पौधे को अमूमन एक ही जलग्रहण क्षेत्र का पानी मिलता है.

चुकि कंटूर मेड़ तकनीक में पारंपरिक खेती के मुकाबले नयी जुताई और रोपण विधि का प्रयोग किया जाता है, ऐसे में किसान शुरुआत में इस तकनीक को स्वीकारने में अनिच्छा का प्रदर्शन कर सकते हैं. इसलिए प्रदर्शन और प्रेरणा की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो जाती है. दूसरी ओर, यह जल संचयन के आसान और सस्ते तरीकों में से एक है. इसे किसान महज एक कुदाल का उपयोग कर कार्यान्वित कर सकता है, किसी अतिरिक्त लागत की जरूरत नहीं होती. बाहरी समर्थन की आवश्यकता न्यूनतम होती है. वैकल्पिक तौर पर इसमें यंत्रों का इस्तेमाल भी किया जा सकता है और उपकरणों की कुछ किस्मों का इस्तेमाल किया जा सकता है. चूंकि किसान इसे अपनी ही जमीन पर लागू कर सकते हैं, इसलिए लागू करने वालों और लाभार्थी के बीच हितों का टकराव भी नहीं होता है.

उपयुक्त परिस्थितियां

फसल उत्पादन के लिए कंटूर मेड़बंदी का निम्नलिखित परिस्थितियों में इस्तेमाल किया जा सकता है:

  • ऐसे खेत जो 5.0% तक समतल हों.
  • वहां वर्षा 350-700 मिमी तक होती हो.
  • रिल्स या ओंडुलेशन जैसे क्षेत्रों से बचा जाना चाहिए.

मेड़ों के बीच की दूरी वर्षा राशि के आधार पर निर्धारित की जानी चाहिए.
इस कम लागत वाली तकनीक से सामान्य से कम बारिश वाले इलाकों में खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने की क्षमता है.
अपेक्षाकृत कम रोपण घनत्व की बात किसानों को हतोत्साहित कर सकती है, खास कर एक अच्छे साल में और खड़ी ढलान पर तकनीक अच्छी तरह से काम नहीं करता है. कंटूर मेड़बंदी अपेक्षाकृत अधिक वर्षा के साथ क्षेत्रों तक ही सीमित हो जाते हैं, छोटे जलग्रहण क्षेत्र की वजह से कृषि योग्य पानी की मात्रा बहुत कम रह जाती है.

निर्माण, संचालन और रखरखाव

केन्या में कंटूर मेड़. फोटो: एसएआई.

समानांतर, या लगभग समानांतर, कंटूर मेड़ों का समग्र लेआउट एक और दो मीटर की दूरी पर होता है. मेड़ बनाने के लिए मिट्टी की खुदाई कर निचले ढलान पर रखा जाता है, ताकि जलग्रहण क्यारियों और मेड़ के बीच बारिश के पानी को रोका जा सके. नालियों को कुछ मीटर की दूरी पर एक दूसरे से जोड़ दिया जाता है ताकि पानी का समान वितरण हो सके. मोड़ पर खाई बनाना जरूरी होता है ताकि इसे बाहरी बारिश से बचाया जा सके. मेड़ों को उतना ऊंचा ही बनाना चाहिये ताकि बारिश के पानी को बाहर जाने से रोका जा सके. जैसा कि बारिश के पानी का संचयन मेड़ों के बीच एक छोटी सी क्यारी से किया जाता है, ऐसे में इसकी ऊंचाई 15 -20 सेमी ही पर्याप्त होती है. अगर बांधों के बीच 2 मीटर से अधिक दूरी हो, तो मेड़ की ऊंचाई में वृद्धि की जानी चाहिए.

कृषि भूमि को परिभाषित करना आसान नहीं है. नालियों के साथ 50 सेमी की क्यारियां बनाना आम बात है. इस क्षेत्र के भीतर ही फसलें लगायी जाती हैं, और बारिश के पानी को नालियों में उपयोग किया जाता है. इस प्रकार मेड़ों के बीच 1.5 मीटर की विशिष्ट दूरी के लिए, सी: सीए अनुपात 2:1 होगा; यानी जलग्रहण क्यारी एक मीटर की होगी और कृषि क्यारी आधा मीटर की. 2 मीटर की दूरी वाले मेड़ों में यह अनुपात 3:1 होगा. मेड़ों के बीच दूरी बढ़ाने या घटाने पर सी:सीए अनुपात को इसी आधार पर समायोजित किया जा सकता है.

अगर शुरुआत में ही मेड़ों का निर्माण ठीक से कर लिया जाये, तो कम से कम रखरखाव की जरूरत होती है. कोई कतार या मेड़ें अगर ध्वस्त हो गई हों तो पुनर्निर्माण की आवश्यकता हो जाती है.

Costs

With human labour, an estimated 32 person days/ha is required. Using machinery, the time requirement is reduced, but the costs are increased to an estimated US$100/ha. This technology is considered low cost, although the rate of its adoption has not been high.

Field experiences

While contour ridges can be made by hand or by animal draft, implementation can also be mechanized. This is particularly appropriate for larger scale implementation. The Integrated Programme for the Rehabilitation of Damergou, Niger is testing ways of bringing degraded land back into productive use, where annual rainfall is only in the range of 300 mm. The contour ridge technique for crop production was introduced 1988.

For this purpose, a special plough was designed to form the ridges, usually in straight lines (though approximately on the contour), at a distance of 2 metres apart. The machine is reversible, and the sub-soil beneath the furrows is ripped to increase infiltration rates. Cross ties are formed by the machine at an automatically controlled spacing. It is reported that one hectare can be treated in an hour, and up to 1,000 ha in a four month season by a single machine. The involvement of the villagers and implications for land tenure however need to be carefully taken into account as the programme develops.

Akvo RSR Projects

The following project(s) utilize contour ridges.

Akvorsr logo lite.png
RSR Project 674
Wateroogst:
Konso Woreda/Eshimale


Manuals, videos and links

  • Large wiki on water use for agriculture: Agropedia

Acknowledgements