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कंटूर मेड़बंदी, जिन्हें कई दफा कंटूर फरोज या माइक्रो वाटरशेड भी कहा जाता है, का इस्तेमाल फसल उत्पादन के लिए किया जाता है. कंटूर के बाद मेड़बंदी आमतौर पर 1 से 2 मीटर की दूरी पर होती हैं. बारिश का पानी मेड़बंदी के बीच में गैरकृषि भूमि की क्यारियों में जमा किया जाता है और उनका भंडारण मेड़ के ठीक ऊपर की नालियों में किया जाता है. नालियों के दोनों किनारों पर फसलें उगायी जाती हैं.
बहुत कम लंबे जलग्रहण क्षेत्र में जमा बारिश के पानी से उपज काफी बेहतर होती है और जब डिजाइन व निर्माण सही ढंग से किया गया हो तो सिस्टम से बाहर अपवाह का कोई नुकसान नहीं होता है. इसका एक और लाभ यह है कि पैदावार समान रूप से होती है, क्योंकि हर पौधे को अमूमन एक ही जलग्रहण क्षेत्र का पानी मिलता है.
चुकि कंटूर मेड़ तकनीक में पारंपरिक खेती के मुकाबले नयी जुताई और रोपण विधि का प्रयोग किया जाता है, ऐसे में किसान शुरुआत में इस तकनीक को स्वीकारने में अनिच्छा का प्रदर्शन कर सकते हैं. इसलिए प्रदर्शन और प्रेरणा की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो जाती है. दूसरी ओर, यह जल संचयन के आसान और सस्ते तरीकों में से एक है. इसे किसान महज एक कुदाल का उपयोग कर कार्यान्वित कर सकता है, किसी अतिरिक्त लागत की जरूरत नहीं होती. बाहरी समर्थन की आवश्यकता न्यूनतम होती है. वैकल्पिक तौर पर इसमें यंत्रों का इस्तेमाल भी किया जा सकता है और उपकरणों की कुछ किस्मों का इस्तेमाल किया जा सकता है. चूंकि किसान इसे अपनी ही जमीन पर लागू कर सकते हैं, इसलिए लागू करने वालों और लाभार्थी के बीच हितों का टकराव भी नहीं होता है.
उपयुक्त परिस्थितियां
फसल उत्पादन के लिए कंटूर मेड़बंदी का निम्नलिखित परिस्थितियों में इस्तेमाल किया जा सकता है:
- ऐसे खेत जो 5.0% तक समतल हों.
- वहां वर्षा 350-700 मिमी तक होती हो.
- रिल्स या ओंडुलेशन जैसे क्षेत्रों से बचा जाना चाहिए.
मेड़ों के बीच की दूरी वर्षा राशि के आधार पर निर्धारित की जानी चाहिए.
इस कम लागत वाली तकनीक से सामान्य से कम बारिश वाले इलाकों में खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने की क्षमता है.
अपेक्षाकृत कम रोपण घनत्व की बात किसानों को हतोत्साहित कर सकती है, खास कर एक अच्छे साल में और खड़ी ढलान पर तकनीक अच्छी तरह से काम नहीं करता है. कंटूर मेड़बंदी अपेक्षाकृत अधिक वर्षा के साथ क्षेत्रों तक ही सीमित हो जाते हैं, छोटे जलग्रहण क्षेत्र की वजह से कृषि योग्य पानी की मात्रा बहुत कम रह जाती है.
निर्माण, संचालन और रखरखाव
समानांतर, या लगभग समानांतर, कंटूर मेड़ों का समग्र लेआउट एक और दो मीटर की दूरी पर होता है. मेड़ बनाने के लिए मिट्टी की खुदाई कर निचले ढलान पर रखा जाता है, ताकि जलग्रहण क्यारियों और मेड़ के बीच बारिश के पानी को रोका जा सके. नालियों को कुछ मीटर की दूरी पर एक दूसरे से जोड़ दिया जाता है ताकि पानी का समान वितरण हो सके. मोड़ पर खाई बनाना जरूरी होता है ताकि इसे बाहरी बारिश से बचाया जा सके. मेड़ों को उतना ऊंचा ही बनाना चाहिये ताकि बारिश के पानी को बाहर जाने से रोका जा सके. जैसा कि बारिश के पानी का संचयन मेड़ों के बीच एक छोटी सी क्यारी से किया जाता है, ऐसे में इसकी ऊंचाई 15 -20 सेमी ही पर्याप्त होती है. अगर बांधों के बीच 2 मीटर से अधिक दूरी हो, तो मेड़ की ऊंचाई में वृद्धि की जानी चाहिए.
कृषि भूमि को परिभाषित करना आसान नहीं है. नालियों के साथ 50 सेमी की क्यारियां बनाना आम बात है. इस क्षेत्र के भीतर ही फसलें लगायी जाती हैं, और बारिश के पानी को नालियों में उपयोग किया जाता है. इस प्रकार मेड़ों के बीच 1.5 मीटर की विशिष्ट दूरी के लिए, सी: सीए अनुपात 2:1 होगा; यानी जलग्रहण क्यारी एक मीटर की होगी और कृषि क्यारी आधा मीटर की. 2 मीटर की दूरी वाले मेड़ों में यह अनुपात 3:1 होगा. मेड़ों के बीच दूरी बढ़ाने या घटाने पर सी:सीए अनुपात को इसी आधार पर समायोजित किया जा सकता है.
अगर शुरुआत में ही मेड़ों का निर्माण ठीक से कर लिया जाये, तो कम से कम रखरखाव की जरूरत होती है. कोई कतार या मेड़ें अगर ध्वस्त हो गई हों तो पुनर्निर्माण की आवश्यकता हो जाती है.
लागत
मानव श्रम से बनाने पर, एक अनुमान के अनुसार 32 व्यक्ति दिवस/हेक्टेयर की आवश्यकता होती है. मशीनरी का उपयोग करते हुए, समय तो कम लगता है, लेकिन लागत 100 अमेरिकी डॉलर/हेक्टेयर तक बढ़ जाती है. हालांकि यह तकनीक, कम लागत वाली है, इसे लागू करने की दर भी बहुत ऊंची नहीं है.
जमीनी अनुभव
जहां कंटूर मेड़ हाथों से जानवर की मदद से बनाये जा सकते हैं, इनका कार्यान्वयन यंत्रीकृत भी हो सकता है. बड़े पैमाने पर इसे लागू करने के लिए यह विशेष रूप से उपयुक्त है. दिमेरगाओ, नाइजर में इसके एकीकृत कार्यक्रम को लागू कराने के लिए परीक्षण के दौरान पाया गया कि इसके जरिये कम गुणवत्ता वाली जमीन को उत्पादन के काम में लाया जा सकता है. ऐसी जमीन जहां वार्षिक वर्षा 300 मिमी के आसपास हो. फसल उत्पादन के लिए कंटूर मेड़ तकनीक का इस्तेमाल सबसे पहले 1988 में किया गया था.
मेड़ के प्रयोजन के लिए, एक विशेष हल को विकसित किया गया है, इससे कंटूर से 2 मीटर की दूरी लिए सीधी रेखा में जुताई की जाती है. यह मशीन प्रतिवर्ती है, और नाली के नीचे उप-मिट्टी में रिसाव की दरों में वृद्धि करने के लिए दरारें बन जाती हैं. इस मशीन द्वारा क्रास टाई बनाया जाता है ताकि नियंत्रित तरीके से दूरी की समानता को बरकरार रखे. यह देखा गया है कि एक हेक्टेयर जमीन का उपचार एक घंटे में किया जा सकता है, और एक ही मशीन से चार महीने के एक मौसम में 1,000 हेक्टेयर जमीन का उपचार किया जा सकता है. हालांकि, ग्रामीणों की भागीदारी और भूस्वामित्व की जटिलताओं पर खास सावधानी बरतने की जरूरत होती है.
एक्वो आरएसआर परियोजना
निम्नांकित परियोजनाओं में कंटूर मेड़बंदी का इस्तेमाल हुआ है.
नियमावली, वीडियो और लिंक
- पूर्वी अफ्रीका में जल-स्मार्ट कृषि, केयर, जीडब्लूआई, आईडब्लूएमआई, और सीजीआईएआर द्वारा एक सहयोगात्मक प्रयास. छोटे किसानों के लिए जल प्रबंधन में सुधार वाला 321 पृष्ठ का एक स्रोत.
- 5.जल संचयन तकनीक. एफएओ.
- कृषि के लिए पानी के उपयोग पर विकिपीडिया स्रोत: एग्रोपीडिया
संदर्भ साभार
- रुफीनो एल, वाटर कंजर्वेशन टेक्निकल ब्रीफ : टीबी 2 - रेनवाटर हार्वेस्टिंग एंड आर्टिफिशियल रिचार्ज टू ग्राउंडवाटर. सस्टेनेबल एग्रीकल्चर इनिशियेटिव (साई). अगस्त 2009.
- नेचुरल रिसोर्सेज मैनेजमेंट एंड इन्वायरमेंट डिपार्टमेंट, 5.जल संचयन तकनीक. एफएओ.
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