Difference between revisions of "वाटर पोर्टल / वर्षाजल संचयन / भूजल पुनर्भरण / नियंत्रित बाढ़ और विपथन-फैलाव वाहिकाएं"

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Revision as of 02:34, 12 January 2016

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घाटियों के प्रसार से भूजल पुनर्भरण. एरिजोना, अमरीका.

यह बाढ़ संचयन की एक ऐसी तकनीक है, जिसे नियंत्रित बाढ़ के नाम से जाना जाता है, इसके माध्यम से बाढ़ को नियंत्रित करके पानी को पहले नदी की ओर मोड़ा जाता है और फिर विभिन्न विपथन संरचनाओं और नहरों के माध्यम से एक बड़े सतही क्षेत्र में एक समान छोड़कर फैलने दिये जाता है, इसे फैलाव क्षेत्र या स्प्रैडिंग बेसिन के रूप में भी जाना जा सकता है, इस भेत्र में इस पानी का इस्तेमाल भूजल पुनर्भरण, सिंचाई तालाबों आदि को भरने और चरागाहों को पानी देने में किया जाता है. दरअसल इस तकनीक के पीछे यह सोच है कि जमीन पर पानी की एक हल्की सी चादर जैसी बिछ जाए और वो भी धीमी गति में यानी पानी की मात्रा इतनी धीमी गति से छोड़ी जाए कि मिड्डी की परत को कोई नुकसान न पहुँचे. इसमें केवल बाढ़ सिंचाई ही शामिल नहीं है , बल्कि स्टैण्डर्ड चैनल इरिगेशन भी शामिल है जिससे एक धारा के माध्यम से नदी के पानी को खेतों तक पहुँचाया जाता है या यूं भी कह सकते हैं कि अतिवृष्टि वाले क्षेत्रों में भी इस तकनीक का उपयोग करके वर्षा जल को पहले नदियों और फिर खेतों की ओर मोड़ दिया जाता है, जिससे मिट्टी को नुकसान नहीं पहुंचता है और हरियाली भी बनी रहती है.


कहाँ इस तकनीक का उपयोग संभव है

उच्च मात्रा और नदी के तीव्र बहाव वाले क्षेत्रों में जहां पारंपरिक सिंचाई की सुविधाओं का उपयोग नहीं हो रहा है, इस तकनीक का उपयोग किया जा सकता है.


लाभ नुकसान
- अन्य तकनीकों की अपेक्षा इसमें बहुत कम जमीन की जरूरत होती है, जिससे यह तकनीक उपयोगकर्ताओं के लिए कॉस्ट इफेक्टिव होती है यानी इसके उपयोग में लागत कम आती है.

- नदी के पानी में मौजूद तमाम तरह के मिनरल्स मिट्टी में मिलने से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है, जिससे खेती में काफी फायदा मिलता है.
- ईरान में किए गए प्रयोगों से पता चला है कि 83.5 प्रतिशत नदी का पानी छन-छन कर अंदर जाता है.

- इस कार्य के लिए जमीन के बड़े हिस्से की जरूरत होती है.

- इस तरह की नदियों में बहाव का वक्त और उसकी मात्रा के बारे में अनिश्चितता बनी रहती है. इस तकनीक का यह दुर्बल पक्ष है.
- तलछट की मात्रा बढ़ने के कारण आगे चलकर पानी के रिचार्ज में भी कमी आने लगती है. तलछट (गाद) के जमा हो जाने की वजह से कृषि भूमि गांव की जमीन से ऊंची होती चली जाती है, जिससे कई बार गांव पर बाढ़ का खतरा बन जाता है. इसके परिणामस्वरूप रिवर बैंक यानी नदियों के किनारे के टूटने की आशंका भी बढ़ जाती है.
- अत्यधिक मात्रा में पानी के बहाव को रोकने के लिए ऊंचे तटबंध की जरूरत होती है और इसके लिए काफी संख्या में मजदूरों की जरूरत पड़ती है. इरिट्रिया में 5 से 10 मीटर ऊंचा बांध बनाया गया.
- इस तरह के तकनीक की सबसे बड़ी कमी उन क्षेत्रों में सबसे अधिक होती है जहां का पानी समुद्र में नहीं मिल पाता है. ऐसी स्थिति में सभी पानी एक जगह बेसिन में जमा होते हैं, इस कारण से दूसरे जगहों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

पर्यावरण में परिवर्तन के लिए लचीलापन

सुखाड़

सूखे का प्रभाव: फसल की कम पैदावार.
प्रभाव का मूल कारण:: बाढ़ से फसलों को कम पानी.
वॉश सिस्टम के लचीलापन को बढ़ाने के लिए: : सूखा प्रतिरोधी और तेजी से बढ़ने वाले फसलों को इस क्षेत्र में लगाना उपयोगी होगा, जिससे किसानों को सही आजीविका प्राप्त हो सकेगी. सूखे के प्रबंधन पर अधिक जानकारी: सूखा प्रभावित क्षेत्रों में लचीला वॉश सिस्टम का प्रयोग.

बाढ़

बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों के लिए बेसिन को बढ़ाया जाना सही तरीका है. इस तरह से नदी के अत्यधिक पानी को इस तरह के बेसिन में स्थानांतरित कर दिया जाता है जिससे इन क्षेत्रों में अवांछित बाढ़ की स्थिति से आसानी से निपटने में मदद मिल सकती है. हालांकि, अत्यधिक बाढ़ वाले क्षेत्रों में बेसिन का आकार बड़ा होना चाहिए ताकि बारिश के अतिरिक्त पानी को अपने में समा सके. इसके अलावा अत्यधिक बारिश की दिशा में जमीन के लिए खतरा पैदा होता है, क्योंकि इसके जमीन के लवण बह जाते हैं. इसके लिए पानी को रोकना जरूरी होता है और यह काम तभी हो सकता है जब बेसिन बड़ा हो. ऐसी स्थिति से निपटने के लिए पेड़-पौधों को रोपना जिससे कि वह पानी को सोख सके आर्द्रभूमि में बढ़ोतरी करना, बांध बनाना सही रहता है जिससे कि अतिरिक्त पानी को रोकने में मदद मिलती है.

निर्माण, संचालन और रखरखाव

सीमेंट पर सामान्य टिप्पणी: इसके लिए हमें सबसे पहले संरचनाओं पर ध्यान देना होगा ताकि यह कॉस्ट इफेक्टिव हो सके. नवीनतम तकनीकों के स्थान पर हम वहां उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करें तो बेहतर होगा. उदाहरण के तौर पर - टैंक, बांध, जलमार्ग, कुआं आदि के निर्माण में सही मात्रा में निर्माण सामग्री यानी रॉ मटैरियल का उपयोग न करना और सीमेंट का उपयोग करना है. इसके लिए सबसे जरूरी है कि शुद्ध सामग्री - साफ पानी, साफ बालू और स्वच्छ रेत का उपयोग करना चाहिए. इन सामग्री को बहुत अच्छी तरह से उपयोग में लेना चाहिए. मिक्सिंग यानी मिश्रण के दौराम पानी का कम से कम उपयोग करें. सीमेंट का भी उतना ही उपयोग करें जितना जरूरी हो, यहां तक कि ड्राई सीमेंट का उपयोग करें न कि भींगा. तीसरी बात यह है कि इस दौरान पूरे समय कम से कम एक सप्ताह तक नमी रहनी चाहिए और इसके लिए प्लास्टिक, बड़े पत्ते या अन्य मटेरियल से निर्माण को कवर करके रखें ताकि यह गीला रहे.

विशिष्ट सलाह:

  • नवीनतम तकनीकों पर ध्यान देने की जगह मोड़ संरचना के लिए कम लागत पर ध्यान देनी चाहिए. मौजूदा संसाधनों पर ध्यान देकर ऐसा संभव किया जा सकता है. सिंचाई के लिए बाढ़ नियंत्रण तकनीक का बेहतर उपयोग करने के लिए स्थानीय किसानों की सहभागिता जरूरी है.
  • नए सिस्टम को उपयोग में लाने के लिए मौजूदा प्रथाओं और भूमि अधिकारों का निर्माण करना चाहिए. अतीत में क्या हुआ था इन स्थितियों पर जरूर विचार करना चाहिए.

निर्माण-पूर्व ध्यान देने योग्य तथ्य

बाढ़ से वर्षा का क्षेत्र बदलता रहता है और इसकी भविष्यवाणी करनी बहुत मुश्किल है. पारंपरिक वर्षा-जल का प्रवाह मॉडल का उपयोग भविष्यवाणी करने के लिए बहुत ही मुश्किल हो जाता है. बड़े पैमाने पर वर्षाजल संचयन के लिए बनाई जाने वाली स्थायी संरचना आर्थिक तौर पर अव्यावहारिक और नुकसानदायक भी है, क्योंकि कई बार गाद जमा हो जाती है और यह 3-10 प्रतिशत जगह घेर लेता है. स्थान-विशेष पर यह बदलता रहता है. सिल्ट की दिशा बदलने और गाद जमा होने की वजह से कृषि भूमि को ऊंचा कर देता है. इससे कई बार नदी अपनी दिशा बदल लेती है और संरचना स्ट्रक्चर काम का नहीं रह जाता है. कई बार अत्यधिक मात्रा में मलबे की वजह से इनटेक को भी प्रभावित करता है.

निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए:

  • बाढ़ के बाद कुछ हिस्सों का पुनर्निर्माण अधिक स्थायी संरचनाओं की डिजाइनिंग की तुलना में कम लागत आती है. इस तरह की स्थितियों में पारंपरिक मोड़ संरचना अत्यधिक प्रभावी होती है. कई बार अत्यधिक बाढ़ की दिशा में पानी के साथ भारी मात्रा में गाद आ जाता है इस कारण से समस्या पैदा हो जाती है.
  • जल वितरण और नमी संरक्षण के क्षेत्र में सुधार ज्यादा प्रभावी होता है बनिस्पत मोड़ संरचना में सुधार की अपेक्षा. जहां इसका उपयोग नहीं किया गया है, ऐसे क्षेत्रों में इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.
  • पारंपरिक सिस्टम में इस तरह के बदलाव करने चाहिए जिससे कि अत्यधिक वर्षा के समय भी इन पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़े. वर्षा के अनिश्चित और अत्यधिक परिवर्तनशील प्रकृति को देखते हुए जरूरत के समय किसानों को शिफ्ट किया जाना चाहिए.
  • वृद्धिशील संरचनात्मक सुदृढ़ीकरण के लिए मौजूदा पारंपरिक इनटेक बहुत ही प्रभावी और कम लागत आती है. ऐसी स्थिति में ज्यादा हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए. सरल मोड संरचनाओं का निर्माण के लिए पीपा पुल, रबड़ और कंक्रीट का उपयोग किया जा सकता है. स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल करके किसान आसानी से इसे बना सकते हैं. अनियंत्रित प्रवाह को रोकने के लिए नहरों के सिरे का निर्माण इस तरह से किया जाना चाहिए ताकि सिंचाई के बनियादी ढांचे को नुकसान न पहुंचे. नहरों का संचालन और रख-रखाव भी सही तरीके से हो सके.
  • संरचना का निर्माण इस तरह होना चाहिए ताकि रूटीन ऑपरेशन की जरूरत महसूस लगभग न के बराबर हो. हालांकि, पब्लिक सेक्टर की इकाइयों में देखरेख की आवश्यकता महसूस की जाती रही है और यह एक सही कदम है.

परिचालन और रख-रखाव

बाढ़ सिस्टम के लिए सामुदायिक प्रबंधन और बाचतीत आवश्यक है. प्रोजेक्टों के रखरखाव के लिए अनावश्यक तौर पर समझौतों को औपचारिक रूप देने से बचना चाहिए. :

  • रखरखाव की जिम्मेदारी किसानों पर छोड़ देनी चाहिए. जलग्रहण का उपयोग करने वालों और सामुदायिक स्तर पर इसके रखरखाव की जिम्मेदारी होनी चाहिए. बुलडोजर का प्रावधान बहुत ही लोकप्रिय है और बाढ संरचनाओं के रखरखाव और क्षतिग्रस्त संरचनाओं के निर्माण में इसका उपयोग आसानी से किया जा सकता है. यहां समस्या तब आती है जब किसान बड़ी संरचना का निर्माण कर लेते हैं और ऐसी स्थिति में बुलडोजर के प्रयोग में ज्यादा खर्चा आता है.
  • छोटे किसान समूहों के लिए समर्थन ज्यादा होना चाहिए और यह स्थानीय आधार, स्थानीय गवर्नमेंट के जरिए होना चाहिए. इस कार्य में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से सब्सिडी दी जानी चाहिए.

जमीनी अनुभव

इमेज को जूम करके आप देख सकते हैं कि किस तरह से बाढ़ का पानी फैलता है..
ड्राइंग: अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में इस तरह की रणनीति बनाई जानी चाहिए ताकि मैनेजमेंट में किसी तरह की दिक्कत न हो. यूनेस्को.

ईरान

भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण पानी का स्तर लगातार नीचे जा रहा है और इसकी दर प्रतिवर्ष 1.5 मीटर है. भूजल की गुणवत्ता भी इससे तेजी से प्रभावित हो रही है. ईरान से 115 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिणी शहर लेरेस्टान में भूजल की गुणवत्ता बहुत ही ज्यादा खराब हो चुकी है. ईरान के 3500 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई भूजल के द्वारा की जा रही है. 1983 से 2001 के दौरान भूजल के गिरते स्तर को रोकने के लिए पांच फ्लड वाटर स्प्रेडिंग सिस्टम का निर्माण किया गया है.

2002-2003 के दौरान काफ्तारी फ्लडवाटर स्प्रेडिंग सिस्टम के द्वारा पानी के इनफ्लो और आउटफ्लो की जांच की गई. इस दौरान मैक्सिमम इनफ्लो और आउटफ्लो क्रमश: 20.3 और 7.26 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड रहा. नौ फ्लडिंग सिस्टम में इनफ्लो और आउटफ्लो 886,000 और 146,000 क्यूबिक घनमीटर रहा. इस तरह से 83.5 प्रतिशत इनफ्लो सिस्टम रिचार्ज हुआ और बहुत ही कम मात्रा में वाष्प के द्वारा पानी का नुकसान हुआ. इससे भूजल के रिचार्ज में बाढ़ संरक्षण प्रणाली की उपयोगिता साबित होती है.

इस सिस्टम के द्वारा 70 प्रतिशत से अधिक जल का उपयोग किया जाता है. इस तरह से कृषि कार्यों में इसकी उपयोगिता काफी बढ़ जाती है. इससे मिट्टी की गुणवत्ता भी बढ़ती है. इसके अतिरिक्त भूजल का स्तर भी बढ़ता है. बाढ़ के पानी में भूजल की अपेक्षा (0.3-0.4 Vs 2.0-9.0ds/m) है।

नियमावली, संचालन और रखरखाव

संदर्भ साभार