वाटर पोर्टल / वर्षाजल संचयन / भूजल पुनर्भरण / पारगम्य चट्टान बांध

From Akvopedia
Jump to: navigation, search
English Français Español भारत മലയാളം தமிழ் 한국어 中國 Indonesia Japanese
Perm rock dam icon.png
पारगम्य चट्टान बांध, बहाव. फोटो : यूएसजीएस.

पारगम्य चट्टान बांधों का निर्माण घाटी लंबी, कम ऊंचाई वाली चट्टानों की दीवार से होता है, जिनके शिखर घाटी के तल के किनारे-किनारे समान ऊंचाई लिये होते हैं. यह तटीय धाराओं को फैलने देता है. यह बाढ़-जल कृषि तकनीक है, जो बाढ़ के पानी को फैलने देता है और नियंत्रित भी करता है ताकि फसल की वृद्धि ढंग से हो सके, साथ ही यह कटाव को भी रोकता है. पारगम्य चट्टान बांध को 'सीढ़ीदार वाडी' का एक रूप माना जा सकता है. हालांकि सीढ़ीदार वाड़ी का प्रयोग अमूमन अधिक शुष्क क्षेत्रों में जलधाराओं के भीतर संरचनाओं के लिए होता है.

पारगम्य चट्टान बांध एक अधिक प्रभावी और लोकप्रिय तकनीक प्रदान करते हैं, खास तौर पर गैबियन के मुकाबले नाले के कटाव के बेहतर नियंत्रण के मद्देनजर. नाले के प्रभावी नियंत्रण के अतिरिक्त पारगम्य चट्टान बांधों की एक खासियत और है, इसमें बांधों के पीछे उगने वाली फसलों की पैदावार काफी बढ़ जाती है.

बांधों के पीछे गाद के जमाव के जरिये नालों का जीर्णोद्धार हो जाता है, गहराई बढ़ जाती है और मिट्टी की गुणवत्ता तत्काल बेहतर हो जाती है, नतीजन बांधों के पीछे की मिट्टी उपजाऊ हो जाती है. फसलों के लिए नमी की मात्रा में सुधार होता है. पारगम्य चट्टान बांधों के साथ लगी भूमि में चारे की पैदावार 1 टन / हेक्टेयर से बढ़ कर 1.9 टन / हेक्टेयर तक हो जाती है. इन बांधों के पीछे लगाए जाने वाली अन्य फसलें हैं (भारी मिट्टी पर) चावल, बाजरा और मूंगफली.

उपयुक्त परिस्थितियां

फसल उत्पादन के लिए पारगम्य चट्टान बांधों का निर्माण निम्नलिखित परिस्थितियों किया जा सकता है :

  • वर्षा: 200-750 मिमी; शुष्क और अर्द्ध क्षेत्रों के लिए.
  • मिट्टी: सभी कृषि मिट्टी- खराब मिट्टी का उपचार किया जा सकता है.
  • ढलान: 2% से कम हो तो बेहतर ताकि पानी प्रभावी तरीके से फैल सके.
  • स्थलाकृति: चौड़े, उथले घाटी बेड.

इस प्रणाली का इस्तेमाल अमूमन अपेक्षाकृत व्यापक और उथली घाटियों में किया जाता है. यह तकनीक उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हैं, जहां 700 मिमी वार्षिक वर्षा से कम बारिश होती है, जहां उत्पादक भूमि में नाले बनाये जाते हैं. यह खास तौर पर घाटी की निचली जमीन के लिए उपयुक्त हैं, जहां ढलान 2% से कम हों, और जहां पत्थरों की आपूर्ति और इन्हें पहुंचाने के लिए परिवहन के साधन उपलब्ध हों.

लाभ हानि
- फसल उत्पादन में वृद्धि और कटाव नियंत्रण. खेती और बाढ़ के पानी के प्रसार के परिणामस्वरूप.

- भूमि प्रबंधन में सुधार. नाले पर उपजाऊ गाद का जमा होना.
- भूजल पुनर्भरण में वृद्धि.

- अपवाह वेग और कटाव क्षमता में कमी.

- उच्च परिवहन लागत.
- पत्थर की बड़ी मात्रा में आवश्यकता.


निर्माण, संचालन और रखरखाव

पारगम्य चट्टान बांध, तीर की दिशा में ढलान है. फोटो: एसएआई.

प्रत्येक बांध की लंबाई में आमतौर पर 50 और 300 मीटर के बीच है. बांध की दीवार में नाले के अंतर्गत आम तौर पर 1 मीटर ऊंची है, और कहीं-कहीं ऊंचाई 80 और 150 सेमी के बीच है. बांध की दीवार भी समतल है (2:1) निचली ढलान के मुकाबले ऊपरी ढलान पर (1:2), ऐसा संरचना को बेहतर स्थिरता देने के लिए किया गया है, जब ये भरी हों. फाउंडेशन के लिए एक उथली खाई स्थिरता में सुधार लाती है और निचली खुदाई के जोखिम को कम करती है. बाहरी दीवार पर बड़े पत्थरों और अंदरूनी दीवार पर छोटे पत्थरों का इस्तेमाल किया जाता है.

लागत

एक सामान्य चट्टान बांध जो 2 से 2.5 हेक्टेयर जमीन के लिए कटाव नियंत्रण और जल आपूर्ति प्रदान करता है, में 500-650 अमेरिकी डॉलर की लागत और 300-600 मानव श्रम की लागत आती है.

जमीनी अनुभव

बुर्किना फासो में इस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए कई संगठनों को शामिल किया गया है. ये संरचनाएं श्रम प्रधान हैं और आवश्यक पत्थर की मात्रा उपलब्ध कराने के लिए परिवहन के साधनों की आवश्यकता होती है. वे गांव जो इस प्रौद्योगिकी के लिए अनुरोध करते हैं आमतौर पर परिवहन लागत का आधा भुगतान करते हैं, पूरा श्रम उपलब्ध कराते हैं और बांध का प्रबंधन करते हैं. जब ये चट्टान बांध बन जाते हैं, व्यक्तिगत भूमिस्वामियों द्वारा छोटे चट्टान बांधों के निर्माण कराये जाते हैं.

सरकार या एजेंसी की भागीदारी तकनीकी सलाह के लिए भागीदार होती है. अभी हाल में, भूमि और जल संसाधन प्रबंधन गतिविधियों के समन्वय के लिए गांवों को भूमि संसाधन प्रबंधन समिति का गठन करने के लिए कहा जाता है. यह समिति भूमि उपयोग प्रबंधन की योजना तैयार करती है, जो बांध के निर्माण और अन्य पर्यावरण संरक्षण परियोजनाओं के लिए योजना निर्माण का संदर्भ प्रदान करती है.

नियमावली, वीडियो और लिंक

संदर्भ आभार

  • अवुलाचिउ, सेलेशी बेकेले (आईडब्लूएमआई); लेम्पियरि, फिलिप (आईडब्लूएमआई). वाटर हारवेस्टिंग एंड डेवलपमेंट फॉर इंप्रूविंग प्रोडक्टिविटी. IWMI. तुलु, टाफ्फा (एडामा यूनिवर्सिटी). जनवरी, 2009.