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इसके अलावा ऐसी जगह चुनी जानी चाहिए जहां पानी का किसी तरह का रिसाव न होता हो:
* On impervious bedrock or clay rather than rock with fracturesदरारों वाली चट्टानों के बजाय अपारगम्य चट्टानों या मिट्टी का चुनाव करना चाहिए. A good indicator is whether there is some preexisting subsurface flow in the dry season or not and if there are large stones & boulders seen in the riverbedएक अच्छा संकेतक यह देखना है कि सूखे दिनों में पहले से कोई बहाव है या नहीं. Extra care should be taken when siting as seepage can occur under the dam in such cases. * On the base layer rather than on the intermediate clay lens within sand. * Between defined banks with no old riverbeds on either side which could allow sub-surface water around dam edgeयह भी कि नदी तट पर बड़े आकार की चट्टानें और पत्थर आदि हैं या नहीं? ऐसे मामलों में अतिरिक्त सावधानी बरतनी होती है क्योंकि यहां रिसाव की आशंका रहती है.
* दरारों वाली चट्टानों रेत के भीतर मध्यमवर्त्ती क्ले लैंस की बजाय अपारगम्य चट्टानों या मिट्टी का चुनाव करना चाहिए. एक अच्छा संकेतक यह देखना है कि सूखे दिनों में पहले से सबसे नीचे की परत * ऐसे सुनिश्चित किनारों के बीच जहैं कोई बहाव है या नहीं. यह पुराना खादर ना हो उसके किसी भी कि नदी तट किनार पर बड़े आकार की चट्टानें और पत्थर आदि हैं या नहीं? ऐसे मामलों में अतिरिक्त सावधानी बरतनी होती है क्योंकि यहां रिसाव की आशंका रहती है. जिससे उप- सतह पर मौजूद पानी बांध के किनारे तक जा सके। * ऐसी जगहों का चयन किया जाना चाहिए जहां ढलान बालू को आकर्षित करने वाली हो बजाय कि उसे बहाने वाली. 0.45 मीटर प्रति सेकंड के बहाव वाली नदी में रेत का बहाव कम होता है और यह माना जा सकता है कि ऐसे बहाव वाले इलाकों में बहुत ज्यादा छोटे आकार के कण और गाद आदि नदी तल में हो सकते हैं. सपाट ढलान का अर्थ है चौड़े नदी तट. रेत बांध (सैंडडैम) के लिए इनका आकार 25 मीटर से अधिक चौड़ा नहीं होना चाहिए. आदर्श ढलान 0.125 प्रतिशत से 4 प्रतिशत के बीच होनी चाहिए लेकिन यह इससे अधिक भी हो सकती है. परंतु तब बालू जमा बालू की मात्रा कम होगी. एक आसान परीक्षण यह भी हो सकता है कि एक रेत विश्लेषक की मदद लेकर आकार के वितरण, सांद्रता आदि का परीक्षण किया जाए. मध्यम आकार की बालू को इस लिहाज से सबसे बेहतर माना जा सकता है.
जिन जगहों पर नदी संकरी हो और जहां भूजल प्रवाह पर प्राकृतिक बाधा हो उनका चयन किया जाना चाहिए. ऐसा करने से निर्माण की लागत बहुत कम होती है जबकि बालू अधिकाधिक मात्रा में खुदबखुद मौजूद रहती है.
उन स्थानों का चयन करने से बचा जाना चाहिए जहां हेलाइट (सफेद और गुलाबी चट्टानें) नदी तट की ऊपरी धारा में मौजूद हों. क्योंकि इनकी वजह से पानी में खारापन आ सकता है.
एक ही नदी पर कई बांध बनाने का फायदा यह होता है कि सभी लोग एक ही जल स्रोत का इस्तेमाल नहीं करते हैं और इस तरह क्षेत्र को पर्यावरणीय नुकसान नहीं पहुंचता है. बहरहाल, अगर बांध एक दूसरे से बहुत करीब स्थित हुए तो उनका प्रभाव क्षेत्र एक दूसरे को दरकिनार करना शुरू कर देता है. इससे आमतौर पर जलस्तर में इजाफा देखने को मिलता है लेकिन कुल पानी की मात्रा कम होने लगती है. क्षेत्रवार आधार पर देखा जाए तो मात्रा बहुत मायने रखती है इसलिए बांधों के बीच उचित दूरी रखनी चाहिए. जगह-जगह के आधार पर यह दूरी 350 मीटर से 700 मीटर तक हो सकती है.
ये परिस्थितियां तथा जलवायु, पत्थरों की मौजूदगी या नदी तट की ढाल आदि का विस्तृत विश्लेषण करके ही जगह की सुयोग्यता का निर्धारण किया जा सकता है. इसके अलावा हालांकि इसमें कृत्रिम तौर पर सुधार किया जा सकता है लेकिन पानी की गुणवत्ता कम से कम पीने के लायक तो होनी ही चाहिए.
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